यादों की तश्तरी पर जो तुम भी आ जाती
तो बात बनती
रात अगर तुम्हे भी वीरान कर छोड़ती
तो बात बनती
मेज़ पर पड़ी अधूरी फोटो फ्रेम अगर तुम्हे भी तकलीफ देती
तब तो बात बनती
हमारे बीच जो कुछ भी टूटा
अगर तुम भी उसे अपनाती
तो शायद बात बनती
अपनी यादों, रातों, तस्वीरों और गलतियों का सारा बोझ
सिर्फ में ढोता फिरुँ
यह तो कोई बात न हूई
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